Friday, 8 May 2020

महाराणा प्रताप || Maharana Pratap ki jayanti

महाराणा प्रताप || Maharana Pratap ki jayanti
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महाराणा प्रताप || Maharana Pratap ki jayanti


महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया ( ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया रविवार विक्रम संवत १५९७ तदनुसार ९ मई १५४०–१९ जनवरी १५९७) उदयपुरमेवाड में सिसोदिया राजपूत राजवंश के राजा थे। उनका नाम इतिहास में वीरता और दृढ प्रण के लिये अमर है। उन्होंने मुगल सम्राट अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की और कई सालों तक संघर्ष किया। महाराणा प्रताप सिंह ने मुगलों को कईं बार युद्ध में भी हराया।
उनका जन्म वर्तमान राजस्थान के कुम्भलगढ़ में महाराणा उदयसिंह एवं माता राणी जयवंत कँवर के घर हुआ था। लेखक जेम्स टॉड के अनुसार महाराणा प्रताप का जन्म मेवाड़ के कुंभलगढ में हुआ था । इतिहासकार विजय नाहर के अनुसार राजपूत समाज की परंपरा व महाराणा प्रताप की जन्म कुंडली व कालगणना के अनुसार महाराणा प्रताप का जन्म पाली के राजमहलों में हुआ। १५७६ के हल्दीघाटी युद्ध में ५०० भील लोगो को साथ लेकर राणा प्रताप ने आमेर सरदार राजा मानसिंह के ८०,००० की सेना का सामना किया। हल्दीघाटी युद्ध में भील सरदार राणा पूंजा जी का योगदान सराहनीय रहा। शत्रु सेना से घिर चुके महाराणा प्रताप को झाला मानसिंह ने आपने प्राण दे कर बचाया ओर महाराणा को युद्ध भूमि छोड़ने के लिए बोला। शक्ति सिंह ने आपना अश्व दे कर महाराणा को बचाया। प्रिय अश्व चेतक की भी मृत्यु हुई। यह युद्ध तो केवल एक दिन चला परन्तु इसमें १७,००० लोग मारे गए। मेवाड़ को जीतने के लिये अकबर ने सभी प्रयास किये। महाराणा की हालत दिन-प्रतिदिन चिंताजनक होती चली गई । २५,००० सैनिकों के १२ साल तक गुजारे लायक अनुदान देकर भामाशाह भी अमर हुआ।


महाराणा प्रताप के जन्मस्थान 

महाराणा प्रताप के जन्मस्थान के प्रश्न पर दो धारणाएँ है । पहला महाराणा प्रताप का जन्म कुम्भलगढ़ दुर्ग में हुआ था क्योंकि महाराणा उदयसिंह एवम जयवंताबाई का विवाह कुंभलगढ़ महल में हुआ। दूसरी धारणा यह है कि जन्म पाली के राजमहलों में हुआ।महाराणा प्रताप की माता का नाम जयवंता बाई था, जो पाली के सोनगरा अखैराज की बेटी थी। महाराणा प्रताप को बचपन में कीका के नाम से पुकारा जाता था। लेखक विजय नाहर की पुस्तक हिन्दुवा सूर्य महाराणा प्रताप के अनुसार जब प्रताप का जन्म हुआ था उस समय उदयसिंह युद्व और असुरक्षा से घिरे हुए थे। कुंभलगढ़ किसी तरह से सुरक्षित नही था। जोधपुर का राजा मालदेव उन दिनों उत्तर भारत मे सबसे शक्तिसम्पन्न था। एवं जयवंता बाई के पिता एवम पाली के शाषक सोनगरा अखेराज मालदेव का एक विश्वसनीय सामन्त एवं सेनानायक था। इस कारण पाली और मारवाड़ हर तरह से सुरक्षित था। अतः जयवंता बाई को पाली भेजा गया। वि. सं. ज्येष्ठ शुक्ला तृतीया सं 1597 को प्रताप का जन्म पाली मारवाड़ में हुआ। प्रताप के जन्म का शुभ समाचार मिलते ही उदयसिंह की सेना ने प्रयाण प्रारम्भ कर दिया और मावली युद्ध मे बनवीर के विरूद्ध विजय श्री प्राप्त कर चित्तौड़ के सिंहासन पर अपना अधिकार कर लिया।भारतीय प्रशासनिक सेवा से सेवानिवत्त अधिकारी देवेंद्र सिंह शक्तावत की पुस्तक महाराणा प्रताप के प्रमुख सहयोगी के अनुसार महाराणा प्रताप का जन्म स्थान महाराव के गढ़ के अवशेष जूनि कचहरी पाली में विद्यमान है। यहां सोनागरों की कुलदेवी नागनाची का मंदिर आज भी सुरक्षित है। पुस्तक के अनुसार पुरानी परम्पराओं के अनुसार लड़की का पहला पुत्र अपने पीहर में होता है।[11]इतिहासकार अर्जुन सिंह शेखावत के अनुसार महाराणा प्रताप की जन्मपत्रिका पुरानी दिनमान पद्धति से अर्धरात्रि 12/17 से 12/57 के मध्य जन्मसमय से बनी हुई है। 5/51 पलमा पर बनी सूर्योदय 0/0 पर स्पष्ट सूर्य का मालूम होना जरूरी है इससे जन्मकाली इष्ट आ जाती है। यह कुंडली चित्तौड़ या मेवाड़ के किसी स्थान में हुई होती तो प्रातः स्पष्ट सूर्य का राशि अंश कला विक्ला अलग होती। पण्डित द्वारा स्थान कालगणना पुरानी पद्धति से बनी प्रातः सूर्योदय राशि कला विकला पाली के समान है। [12]डॉ हुकमसिंह भाटी की पुस्तक सोनगरा सांचोरा चौहानों का इतिहास 1987 एवं इतिहासकार मुहता नैणसी की पुस्तक ख्यातमारवाड़ रा परगना री विगत में भी स्पष्ट है "पाली के सुविख्यात ठाकुर अखेराज सोनगरा की कन्या जैवन्ताबाई ने वि. सं. 1597 जेष्ठ सुदी 3 रविवार को सूर्योदय से 47 घड़ी 13 पल गए एक ऐसे देदीप्यमान बालक को जन्म दिया। धन्य है पाली की यह धरा जिसने प्रताप जैसे रत्न को जन्म दिया।"
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महाराणा प्रताप जीवन

महाराणा प्रताप का प्रथम राज्याभिषेक मेंं 28 फरवरी, 1572 में गोगुन्दा में होता हैै, लेकिन विधि विधानस्वरूप राणा प्रताप का द्वितीय राज्याभिषेक 1572 ई. में ही कुुंभलगढ़़ दुुर्ग में हुआ, दूूूसरे राज्याभिषेक में जोधपुर का राठौड़ शासक राव चन्द्रसेेन भी उपस्थित थे |
राणा प्रताप ने अपने जीवन में कुल ११ शादियाँ की थी उनके पत्नियों और उनसे प्राप्त उनके पुत्रों पुत्रियों के नाम है:-
  1. महारानी अजाब्दे पंवार :- अमरसिंह और भगवानदास
  2. अमरबाई राठौर :- नत्था
  3. शहमति बाई हाडा :-पुरा
  4. अलमदेबाई चौहान:- जसवंत सिंह
  5. रत्नावती बाई परमार :-माल,गज,क्लिंगु
  6. लखाबाई :- रायभाना
  7. जसोबाई चौहान :-कल्याणदास
  8. चंपाबाई जंथी :- कल्ला, सनवालदास और दुर्जन सिंह
  9. सोलनखिनीपुर बाई :- साशा और गोपाल
  10. फूलबाई राठौर :-चंदा और शिखा
  11. खीचर आशाबाई :- हत्थी और राम सिंह
महाराणा प्रताप के शासनकाल में सबसे रोचक तथ्य यह है कि मुगल सम्राट अकबर बिना युद्ध के प्रताप को अपने अधीन लाना चाहता था इसलिए अकबर ने प्रताप को समझाने के लिए चार राजदूत नियुक्त किए जिसमें सर्वप्रथम सितम्बर 1572 ई. में जलाल खाँ प्रताप के खेमे में गया, इसी क्रम में मानसिंह (1573 ई. में ), भगवानदास ( सितम्बर, 1573 ई. में ) तथा राजा टोडरमल ( दिसम्बर,1573 ई. ) प्रताप को समझाने के लिए पहुँचे, लेकिन राणा प्रताप ने चारों को निराश किया, इस तरह राणा प्रताप ने मुगलों की अधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया जिसके परिणामस्वरूप हल्दी घाटी का ऐतिहासिक युद्ध हुआ।

हल्दीघाटी का युद्ध


Maharana Pratap || The Real Warrior of Rajputana

Maharana Pratap || The Real warrior of Rajputana
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Maharana PratapMaharana Pratap Singh is extensively considered as a courageous warrior and inventive strategist, who successfully fought the Mughals and safeguarded his people until his death.

The Veer Maharan pratap is the real Warrior and the best king in his era

Maharana Pratap was born on 9th May 1540 in Kumbhalgarh, Rajasthan. His father was Maharana Udai Singh II and his mother was Rani Jeevant Kanwar. Maharana Udai Singh II ruled the kingdom of Mewar, with his capital at Chittor. Maharana Pratap was the eldest of twenty-five sons and hence given the title of Crown Prince. He was destined to be the 54th ruler of Mewar, in the line of the Sisodiya Rajputs.
In 1567, when Crown Prince Pratap Singh was only 27, Chittor was surrounded by the Mughal forces of Emperor Akbar. Maharana Udai Singh II decided to leave Chittor and move his family to Gogunda, rather than capitulate to the Mughals. The young Pratap Singh wanted to stay back and fight the Mughals but the elders intervened and convinced him to leave Chittor, oblivious of the fact that this move from Chittor was going to create history for all times to come

Rana Uday Singh of Mewar had 33 children, among them the eldest was Pratap Singh. Self-respect and virtuous behaviour were the main qualities of Pratap Singh.He was audacious and valiant right from his youth and everyone was assured that he was going to be a very heroic person as he grew up. His abilities to battle and fight with audacity was brilliant to watch and soon became the center of everyone’s attraction. He was more involved in sports and learning to wield weapons rather than general education.

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During Maharana Pratap Singh’s time, Akbar was the Mughal Ruler in Delhi. He was the most powerful emperor of India in terms of wealth and armies as a consequence of which many kings surrender and joined hands that strengthen his power day by day.His strategy was to make use of the strength of Hindu kings to bring other Hindu Kings under his control. Many Rajput kings, abandoning their glorious traditions and fighting spirit, sent their daughters and daughters-in-law to the harem of Akbar with the purpose of gaining rewards and honor from Akbar



Battle of Haldighati

The bloody Siege of Chittorgarh in 1568 had led to the loss of the fertile eastern belt of Mewar to the Mughals. However, the rest of the wooded and hilly kingdom was still under the control of the Rana. The Mughal emperor Akbar was intent on securing a stable route to Gujarat through Mewar; when Pratap Singh was crowned king (Rana) in 1572, Akbar sent a number of envoys entreating the Rana to become a vassal like many other Rajput leaders in the region. When the Rana refused to personally submit to Akbar, war became inevitable.
The Battle of Haldighati was fought on 18 June 1576 between Maharana Pratap and Akbar's forces led by Man Singh I of Amer. The Mughals were victorious and inflicted significant casualties among the Mewaris but failed to capture Maharana. The site of the battle was a narrow mountain pass at Haldighati near Gogunda, modern day Rajsamand in Rajasthan. Maharana Pratap fielded a force of around 3000 cavalry and 400 Bhil archers. The Mughals were led by Man Singh of Amber, who commanded an army numbering around 5000-10,000 men. After a fierce battle lasting more than six hours, Maharana found himself wounded and the day lost. The mughal were unable to capture him. He managed to escape to the hills and lived to fight another day.
Haldighati was a futile victory for the Mughals, as they were unable to capture Maharana Pratap, or any of his close family members in Udaipur. As soon as the empire's focus shifted north-west, Pratap and his army came out of hiding and recaptured the western regions of his dominion

I can write about for what I know only. It may be wrong because I was not present there.
I know Maharana Pratap best for his
Exemplary valour
  1. His honesty
  2. His ethics
  3. His selflessness
  4. His patriotism
  5. His self pride
  6. His adherence to the principals
  7. His popularity as democratic ruler of Mewar. Which was just unthinkable in the contemporary world.
Maharana Pratap Serial

Bharat ka veer putra Maharana Pratap, is an Indian historical fiction produced by Contiloe Entertainment. It is based on the life of Maharana Pratap, a sixteenth century Hindu Rajput ruler of Mewar kingdom, a small region in north-western India in the present day state of Rajasthan.


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The series premiered on 27 May 2013.The final episode of the series aired on 10 December 2015.
The first season mainly covers the teenage years of Maharana Pratap. The second season ends with Pratap's death from illness and the coronation of his son, Amar Singh, as the next Rana of Mewar

Maharan Pratap Height 

He surely was more than 7 feet, as most of the archaeologists have mentioned that his horse was 10 feet long, who could jump so far. So, its evident with his sword even that he was a tall guy. His horse was 6 feet high, and he was a foot taller than his horse as mentioned in history books.
Most of you do not know that Porus was even 7 feet and some inches taller and Alexander (Sikander) was just 5 feet tall. When Porus was caught in Punjab after the battle, he was brought in front of Sikander. Sikander said he is impressed with the height of the ruler. He was too tall, and his entire Greek armed force were all midgets.

Maharana Pratap Armour || 

Maharana Pratap was one of the strongest warriors in India, with a height of 7 feet 5 inchesHe used to carry 360 kg of weight, which included a spear weighing 80 kg, two swords weighing 208 kg and his armour was around 72 kg heavy. His own weight was more than 110 kg. 

Maharana Pratap death
Reportedly, Pratap died of injuries sustained in a hunting accident[16] at Chavand[15]on 19 January 1597,[1] aged 56.[17][1,8] He was succeeded by his eldest son, Amar Singh I.
Historian Satish Chandra notes that
Rana Pratap's defiance of the mighty Mughal empire, almost alone and unaided by the other Rajput states, constitute a glorious saga of Rajput valour and the spirit of self sacrifice for cherished principles. Rana Pratap's methods of sporadic warfare was later elaborated further by Malik Ambar, the Deccani general, and by Shivaji Maharaj.
 Thanks guys I hope aapki post pasand ayi hogi